स्वार्थ की राजनीति कांग्रेस को धरातल पर पहुंचा रही

 


*स्वार्थ की राजनीति कांग्रेस को धरातल पर पहुंचा रही*
*त्याग, तपस्या एवं बलिदान जिस राजनैतिक पार्टी का गहना हो, उसी पार्टी में स्वार्थ की फसल फल फूल रही हो तो ऐसी पार्टी का हर्स  क्या होता है, यह वर्तमान में कांग्रेस की राजनीति से समझा जा सकता है। कांग्रेस में चल रही स्वार्थ की राजनीति को देख महात्मा गाँधी की आत्मा भी आंसू बहा रही होगी*
देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने में जिन हजारों देशभक्तों के साथ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर महात्मा गाँधी तक ने त्याग और बलिदान दिया तथा अपने प्राणों की आहुति दी उन्हीं का गुणगान कर अपनी राजनैतिक पहचान बनाने वाले आज स्वार्थपूर्ति के लिये अपने  सिध्दान्त, विचारधारा, नैतिकता से मुंह मोड़ कर देश को एक बार फिर गुलामी की जंजीरों मे जकड़ने को आतुर हो रहे हैं। गाँधी को अपना आदर्श मानकर राजनीति ख्याति स्थापित करने वाले गांधी की विचारधारा का गला ही नहीं घोट रहे, अपितु अपने स्वार्थ के लिये कांग्रेस को ही धरातल पर ले जाने से चूक नहीं रहे हैं। हम बात करें सत्ता परिवर्तन की तो यह बात सर्वविदित है की विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा ने तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना प्रमुख विरोधी मानकर *माफ करो महाराज* का नारा दिया, ऐसी स्थति में कह सकते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही कांग्रेस की सरकार बनाने में अहम भूमिका रही है, लेकिन सरकार बनते ही प्रदेश के पुर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह एवं मुख्यमंत्री कमलनाथ की जोड़ी ने सिंधिया को हासिये पर लाकर खड़ा कर दिया, इसी प्रकार कमलनाथ समर्थकों ने सिंधिया समर्थकों को भी घौर उपेक्षा का शिकार बना दिया.. अगर यह कहा जाय कि कमलनाथ सरकार में 15 साल तक संघर्सरत रहे जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया गया। यही कारण है कि कमलनाथ सरकार के कद्दावर मंत्री सज्जनसिंह वर्मा को इंदौर में यह कहना पडा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो बन चुकी है, लेकिन कार्यकर्ताओं की सरकार अभी नहीं बनी है। 
प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ के अध्यक्ष बनते ही इंदौर में घर बैठे कुछ स्वार्थी, फुलछाप कांग्रेसी जिन्होंने कांग्रेस के 15 साल विपक्ष में रहने के दौरान कोई आन्दोलन या कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया ऐसे लोगों को शहर कांग्रेस की मुख्य भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया, जिन्होंने 15 साल संघर्ष करने वालों को ही दरकिनार कर दिया, अगर यहां यह कहा जाये कि कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालते ही सिंधिया समर्थकों की उपेक्षा करना शुरु कर दिया था तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 
*सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम अपनों को ही अपमानित कराया*
यह सही है कि कमलनाथ के प्रदेश की राजनीति में आते ही सिंधिया की राजनीति हासिये पर लाने की योजना बन चुकी थी, जिसे सिंधिया के घौर विरोधी माने जाने वाले, राजनीति के चाणक्य दिग्विजय सिंह ने बड़ी प्लानिंग के साथ परवान चड़ाया, इसकी पुर्णाहुती 11 मार्च को सिंधिया के भाजपा की सदस्यता गृहण करते ही हो गई, सिंधिया ने स्वयं के अपमान का बदला तो भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते ही ले लिया, इस बदले में उन्होंने छोटे कार्यकर्ताओं के बारे में कोई विचार नहीं किया, उन्होने यह भी नहीं सोचा की कांग्रेस के जो निष्ठावान एवं जमीनी कार्यकर्ता स्वाभिमान एवं गर्व के साथ देश के लिये कुर्बानी देने वाले अमर शहीदों के सिध्दांतो पर चलकर धर्मनिरपेक्षता का गुणगान करते हुए धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को कोसते हैं, वे कैसे भाजपा जिन्दाबाद के नारे लगाएँगे। 


*बाक्स :  गाँधी को अपना आदर्श मानकर राजनीति ख्याति स्थापित करने वाले गांधी की विचारधारा का गला ही नहीं घोट रहे, अपितु अपने स्वार्थ के लिये कांग्रेस को ही धरातल पर ले जाने से चूक नहीं रहे हैं। हम बात करें सत्ता परिवर्तन की तो यह बात सर्वविदित है की विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा ने तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना प्रमुख विरोधी मानकर *माफ करो महाराज* *का नारा दिया, ऐसी स्थति में कह सकते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही कांग्रेस की सरकार बनाने में अहम भूमिका रही है।*


*प्रकाश महावर कोली*
*(इन्होंने हाल ही में कांग्रेस की राजनीति को त्याग कर पत्रकारिता शुरु की है)*